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जीवन में जब भी संतो एवं महात्माओं के सानिध्य में बैठने का अवसर प्राप्त हुआ है तो अवश्य ही कुछ नए तथ्य जानने को मिले हैं।

मुझे ज्ञात है की ऐसे ही एक अवसर पर मैंने उपस्थित एक संत से प्रश्न किया की यदि भगवान श्री कृष्ण ने जब शांतिदूत के रूप में जाकर अंत में पांच गांव मांगने का प्रस्ताव कौरव राज सभा में रखा था और वह प्रस्ताव दुर्योधन ने अस्वीकार कर दिया था तब क्या भगवान ने कुछ और भी शेष प्रस्ताव पर विचार किया था।

इस प्रश्न के पूछने पर उस संत ने अपने उत्तर में मुझसे इतना ही कहा की भगवान श्री कृष्ण यदि पांच गांव के पश्चात् पांच गाय भी मांगते तो उस प्रस्ताव को भी वहीं अस्वीकार कर दिया जाता।

शांतिदूत भगवान श्री कृष्ण ने जब राज सभा में युद्ध को टालने एवं संधि कराने के उद्देश्य से केवल पांच गांव देने का प्रस्ताव रखा तो दुर्योधन ने उसे ठुकरा दिया तब योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अंततः केवल पांच गायों को देने का प्रस्ताव रखा तो दुर्योधन ने वह भी ठुकरा दिया एवं युद्ध को दोनों पक्षों पर अनिवार्य कर दिया। 

यदि दुर्योधन पांच गांव देने के प्रस्ताव को स्वीकृत कर लेता तो वह जानता था कि वे सब गांव किसी न किसी प्रांत या प्रदेश की सीमा में होते परंतु वह तो तिनके  समान भूमि भी पांडवों को नहीं देना चाहता था। 

फिर क्या हुआ की दुर्योधन ने भगवान श्री कृष्ण के उन पांच गायों को देने के प्रस्ताव को भी अंततः अस्वीकार कर दिया। क्या कभी किसी ने सोचा की दुर्योधन ने ऐसा क्यों किया एवं उस प्रस्ताव को क्यों अस्वीकार कर दिया। वास्तविकता यह है कि दुर्योधन जानता था की पांडव अभी अभी 13 वर्ष के वनवास से लौटे हैं एवं एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकने में उन्हें पारंगत प्राप्त हो चुकी है अतः गाय जो कि एक चलाएं मान जीव है उसके साथ-साथ पांडवों को भटकने में किसी प्रकार की दुविधा नहीं होगी और उनके लिए बचा शेष जीवन भी उसी प्रकार व्यतीत करना कोई असंभव कार्य नहीं था।

वास्तविकता यह है कि दुर्योधन जानता था कि दान में दी गई गाय पर आश्रित कोई भी व्यक्ति उसके पंचगव्य से बने पदार्थों पर पूर्णतया जीवित रह सकता है एवं निश्चित रूप से पांडव भी यही करते एवं होता यह है कि पांडव जो केवल पंचगव्य से ही अपना जीवन यापन करने में सक्षम थे अतः वे सब एक ऋषि तुल्य जीवन व्यतीत करते हुए एक वह साधारण मनुष्य से उठकर सिद्ध ऋषि की श्रेणी में आ जाते एवं उन ऋषि रूप पांडवों का लेश मात्र शॉप भी दुर्योधन के लिए घातक हो सकता था

पंचगव्य ( गाय से प्राप्त दूध, दही,  घी, गोमूत्र एवं गोबर के पानी से बना द्रव्य) का संभावित कलश जो पांडवों को मिल सकता था एवं शांति स्थापित हो सकती थी परन्तु दुर्योधन ने ऐसा न कर सब कुल के लिए अस्थि कलश निश्चित कर दिए।

वास्तव में पंचगव्य पर आश्रित होकर एक सम्पूर्ण एवं विशेष प्रकार का जीवन यापन संभव भी है।