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कुछ ले पुरखों का प्रताप और कुछ ले अपना बाहुबल 

जाने कितने वीर अनोखे चुनते सेना शस्त्र प्रबल 

पा जाते वो लक्ष्य सुनहरा थाम तिरंगा रह अविचल 

उनके कुछ एहसान चुकाएं आओ सोचें ऐसा हल।। 

कैसे सीमाओं पर रह प्रहरी बन देश बचाते हैं 

आ जाए यदि वक़्त बुरा तो अपने प्राण लुटाते हैं 

देकर यूं बलिदान देश पर करते अपना जन्म सफल 

उनके कुछ एहसान चुकाएं आओ सोचें ऐसा हल।। 

जाने कैसी वीर हैं जननी ऐसे पूत उगलती है 

देश प्रेम पर करें समर्पित ममता पर ना पिघलती है 

कर देती कुर्बान देश पर सूना कर अपना आंचल 

उनके कुछ एहसान चुकाएं आओ सोचें ऐसा हल।। 

बूढी आंखें देख रही हैं राह जो घर तक आती है 

कौन सहारा देगा इनको पिता की टूटी लाठी है 

पतझड़ सावन एक से लगते रोते हैं जब भी बादल 

उनके कुछ एहसान चुकाएं आओ सोचें ऐसा हल।। 

भाई का हर सपना बिखरा बहना शोक मनाती है 

पत्नी जब तब चांद को देखे पत्थर सी बन जाती है 

बच्चे मानो पूछ रहे हों कैसा होगा उनका कल 

उनके कुछ एहसान चुकाएं आओ सोचें ऐसा हल।। 

तीरथ हैं घर द्वार जहां पर पलते ऐसे सेनानी 

चलों चलें कुछ फ़र्ज़ निभाएं बात अलग हमने ठानी 

ढूंढें फिरें द्वार कुछ ऐसे बाटें उनके गम कुछ पल 

इतना सा बस वक़्त निकालें आज मिलें या चाहे कल 

उनके कुछ एहसान चुकाएं आओ सोचें ऐसा हल।। 

।।रचयिता वेद खन्ना।। 

२१ अक्टूबर १९४३ को आज़ाद हिन्द फौज का गठन कर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने देश को सेना सौंपी