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त्राहि त्राहि जग में हो भक्त अरज सुनुं

राखने धरम मैैं धरा पे अवतारा हूं

दानवों का वध करूं असुर दमन करूं

पापियों का अंत करूं यही प्रण धारा हूं

रोष जो दिखा रहे बता दो सब दुष्टों को

मैं हूं वही राम किसी युग में न हारा हूं 

ताड़का सुबाहू जैसे जाने कितने ही मारे

शिला सी अहिल्या को शाप से उबारा हूं

जनक सभा में जब शोक में मगन सारे

तोड़ के धनुष मैं ही सब को पछारा हूं

द्वेष जो दिखा रहे बता दो सब वैरीयों को

मैं हूं वही राम किसी युग में न हारा हूं 


खर दुषणों की सेना मारी है अकेले मैंने

सागर पे बांध सेतु मैं ही ललकारा हूं

कुंभकरण संग राक्षसों का वध किया

अहम में डूबे उस रावण को मारा हूं

नाक भों चड़ा रहे बता दो मूढ़ मतियों को

मैं हूं वही राम किसी युग में न हारा हूं 


गुरु मात पिता प्रजा सब की करूं मैं सेवा

रहूं मर्यादा में वचन नहीं टारा हूं

केवट पखारे पांव भीलन लगाऊं गले

झूठ शबरी की खाऊं नहीं दुत्कारा हूं

रोड़े अटका रहे बता दो सब आतुरों को

मैं हूं वही राम किसी युग में न हारा हूं 


मंदिर सदा था वहां मंदिर रहेगा वहीं

अवधपुरी का मैं ही राज दुलारा हूं

जो नहीं सबूत माने मुझको कहानी जाने

ऐसे पापियों को मैं नरक में उतारा हूं

मुझे झुठला रहे बता दो जड़ बुद्धियों को

मैं हूं वही राम किसी युग में न हारा हूं