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वक़्त बेवक्त के इकरार नहीं,

क्यूं नहीं कहते के अब प्यार नहीं 

रोज़ इस पार चले आते थे,

आज कश्ती नहीं पतवार नहीं 

वो जहां चाहे जी चला जाए,

मेरी नज़रों में गिरफ्तार नहीं 

उनके पैरों से लहू निकलेगा,

रास्तों से है जिन्हें प्यार नहीं 

उनके सब शब्द बिखर जाएंगे,

जिनकी आवाज़ में खंकार नहीं 

उनकी खामोश हो गई सांसें,

जिनको धड़कन का ऐतबार नहीं 

खुद ब खुद टूटकर गिरी शाख़ें,

जो दरखतों के अख्तियार नहीं 

जिसने ढाए हैं जुग्नुओं पे सितम,

वो किसी चांद के हकदार नहीं 

सारे पन्नों को लिखा है खूं से,

वो कोई मामूली अख़बार नहीं 

इक न इक रोज़ यकीं होगा तुम्हें,

सब सबूतों के अख़्तियार नहीं 

उनको हालात ने किया मुजरिम,

है यकीं दिल को गुनहगार नहीं 

सारे शिकवों को भुलाकर जा मिल,

जिन्दगी मिलती बार बार नहीं

।दागी।